जोहार हिंदुस्तान | पटना : जैसे-जैसे 2025 विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, विपक्षी दलों की रणनीतियां तेज़ हो रही हैं। ऐसे में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव की नजदीकी और साझा मंचों पर एक साथ दिखना कई राजनीतिक संकेत दे रहा है।
एकजुट विपक्ष या मजबूर गठबंधन?
पिछले कुछ महीनों में दोनों नेताओं ने कई बार एक साथ मंच साझा किया है, खासकर जब बात लोकतंत्र, संविधान और बेरोजगारी जैसे मुद्दों की आई।
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में तेजस्वी यादव का समर्थन और उनकी मौजूदगी ने यह साफ कर दिया है कि दोनों पार्टियां एक बार फिर महागठबंधन के रास्ते पर आगे बढ़ रही हैं।
तेजस्वी यादव ने साफ कहा.. “हम बिहार के युवाओं को रोजगार देना चाहते हैं, और इसके लिए हमें कांग्रेस जैसे साथी की जरूरत है जो हमारे विजन को मजबूती दे सके।”
वहीं राहुल गांधी ने भी तेजस्वी को “युवा और जमीनी नेता” बताते हुए उनका समर्थन किया।
क्या कहती हैं जनता और राजनीतिक समीकरण?
बिहार की राजनीति जातिगत समीकरणों और विकास के वादों के बीच झूलती रही है। ऐसे में अगर कांग्रेस और राजद एक साथ मजबूती से उतरते हैं, तो यह गठबंधन भाजपा-जदयू के लिए चुनौती बन सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि..
तेजस्वी यादव के पास युवाओं और पिछड़े वर्गों का समर्थन है। तो राहुल गांधी के अभियान से कांग्रेस को नए वोट बैंक की उम्मीद है। साथ मिलकर ये दोनों संविधान, आरक्षण, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों को ज़ोर-शोर से उठा सकते हैं। हालांकि, दोनों दलों को अपने-अपने संगठन में एकजुटता और जमीनी स्तर पर मजबूती लानी होगी।
इंडिया गठबंधन की चुनौतियाँ भी कम नहीं
जहां एक ओर यह जोड़ी संभावनाओं से भरी है, वहीं कई चुनौतियाँ भी सामने हैं:
सीटों के बंटवारे को लेकर आपसी सहमति बनाना आसान नहीं होगा।
छोटे दलों की नाराज़गी भी गठबंधन को नुकसान पहुँचा सकती है।
भाजपा-जदयू गठबंधन अभी भी राज्य में मजबूत संगठन और संसाधनों से लैस है।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी आगामी चुनाव में विपक्ष की सबसे बड़ी उम्मीद बनकर उभर रही है।
लेकिन यह उम्मीद तभी हकीकत में बदलेगी, जब यह गठबंधन सिर्फ मंच साझा करने से आगे बढ़कर जमीनी रणनीति, एकजुट नेतृत्व और मजबूत जनसंपर्क अभियान चलाएगा।
बिहार की जनता अब वादों से आगे परिणाम चाहती है। देखना दिलचस्प होगा कि यह जोड़ी उस कसौटी पर कितनी खरी उतरती है।