जोहार हिंदुस्तान | भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास शहीदों और वीरों के अदम्य साहस से भरा पड़ा है, लेकिन कुछ ऐसे नाम भी हैं जो आज हमारी यादों से धुंधला चुके हैं। उन्हीं में से एक हैं शेर अली खान अफरीदी — एक वीर पठान, जिन्होंने 1872 में भारत के औपनिवेशिक शासक और वायसराय लॉर्ड मेयो की हत्या कर ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया।
1857 की चिंगारी से जन्मा प्रतिशोध
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास का वह मोड़ था जिसने लाखों देशवासियों के दिलों में आज़ादी की लौ जलाई। पेशे से सैनिक रहे शेर अली खान अफरीदी भी इस क्रांति की भावना से गहराई से प्रभावित थे। 1857 की बगावत में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के नरसंहार ने उनके दिल में गहरा आक्रोश भर दिया। यह गुस्सा और प्रतिशोध वर्षों तक सुलगता रहा और अंततः 1872 में उन्होंने इसका विस्फोट कर दिया।
अंडमान में मौत का वार
शेर अली खान अफरीदी को एक मामले में अंडमान की सेलुलर जेल भेजा गया था। उसी दौरान 8 फरवरी 1872 को अंडमान की यात्रा पर आए लॉर्ड मेयो का उन्होंने मौके पर ही खंजर से वार कर अंत कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य के इस शीर्ष अधिकारी की हत्या ने अंग्रेजी सत्ता की जड़ों को हिला दिया और उन्हें एहसास दिलाया कि भारतीयों का प्रतिरोध कभी खत्म नहीं होगा।
वीर पठान की निडर चुनौती
एक पठान योद्धा के रूप में शेर अली खान अफरीदी निडर, साहसी और जज़्बे से भरे हुए थे। वे जानते थे कि उनका यह कदम उन्हें मौत के मुंह में ले जाएगा, लेकिन उनके लिए यह बलिदान मातृभूमि की सेवा और 1857 के शहीदों का बदला था। उन्होंने साबित कर दिया कि आज़ादी के लिए लड़ने वाले कभी अन्याय को सहन नहीं करते।
इतिहास की उपेक्षा
दुर्भाग्य से, आज उनके नाम से शायद ही कोई परिचित हो। न स्कूल की किताबों में उनका जिक्र है, न ही राष्ट्रीय स्तर पर उनकी शहादत को उचित सम्मान मिला। समय आ गया है कि हम शेर अली खान अफरीदी जैसे भूले-बिसरे वीर शहीदों को याद करें, जिन्होंने बिना किसी भय के अपने प्राणों की आहुति दी।
हमने उन्हें भुला दिया है, लेकिन इतिहास के पन्नों में उनका नाम सदा अमर रहेगा।