जोहार हिंदुस्तान | लोहरदगा: शहर के बीचो-बीच स्थित ऐतिहासिक विक्टोरिया बड़ा तालाब कभी लोहरदगा की शान और पहचान माना जाता था। इस तालाब के सौंदर्यीकरण और जिर्णोद्धार पर सरकार ने करीब 3 करोड़ 50 लाख रुपये खर्च किए थे। उद्देश्य यह था कि तालाब पर्यटन को बढ़ावा देगा, जिले के साथ-साथ बाहर से भी लोग यहां आकर्षित होंगे। लेकिन आज तालाब का अस्तित्व ही खतरे में है और इसका स्वरूप बद से बदतर होता जा रहा है।
कचरे का ढेर और खुले में शौच ने बिगाड़ी स्थिति
तालाब के उत्तर-पूर्वी हिस्से में पिछले कई वर्षों से आसपास के लोग और दुकानदार खुलेआम कचरा फेंक रहे हैं। अमला टोली से सटे हिस्से में अब हालात ऐसे हो गए हैं कि मानो यह क्षेत्र कचरे का डंपिंग यार्ड बन चुका हो। स्थानीय लोगों का आरोप है कि दुकानदारों और घरों से निकलने वाला ठोस कचरा जानबूझकर तालाब में डाला जाता है। यही नहीं, इस किनारे पर लोग खुले में शौच भी करते हैं, जिससे यहां से गुजरना मुश्किल हो गया है।
आंदोलन से लेकर उपेक्षा तक
तालाब के जिर्णोद्धार के समय स्थानीय लोगों और संगठनों ने आंदोलन किया था। उनका आरोप था कि जिर्णोद्धार के नाम पर तालाब का क्षेत्रफल घटाया जा रहा है। उस समय यह भरोसा दिलाया था कि तालाब को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। मगर आज हकीकत यह है कि कचरे और गंदगी ने तालाब की सुंदरता को पूरी तरह ढक लिया है।
स्थानीय लोग भी किनारा कर रहे
जिन लोगों को तालाब किनारे घूमने और सैर करने आना चाहिए था, वही अब इससे दूर भाग रहे हैं। नज़ारा इतना खराब हो चुका है कि स्थानीय लोग भी अब यहां रुकना पसंद नहीं करते।
कचरे के ढेर और गंदगी के कारण न तो बच्चे यहां खेलने आते हैं और न ही परिवार सैर करने। जबकि करोड़ों रुपये जनता की गाढ़ी कमाई से इस तालाब के जिर्णोद्धार पर खर्च किए गए थे।
जिम्मेदारी किसकी?
जनता का कहना है कि यह सब प्रशासन की लापरवाही और स्थानीय लोगों की असंवेदनशीलता का परिणाम है। यदि समय रहते निगरानी और कार्रवाई नहीं हुई तो लोहरदगा का यह ऐतिहासिक तालाब केवल नाम भर रह जाएगा।