जोहार हिंदुस्तान | भारत की आज़ादी का इतिहास अगर किसी की शहादत के बिना अधूरा है, तो उनमें से एक नाम है – शिवराम हरि राजगुरु। आज उनकी जयंती पर पूरा देश उन्हें नमन करता है। मात्र 23 वर्ष की उम्र में राजगुरु ने वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी आम इंसान नहीं कर सकता। उनकी जिंदगी का हर पल क्रांति, देशभक्ति और बलिदान की मिसाल है।
कौन थे शिवराम राजगुरु?
जन्म : 24 अगस्त 1908, महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के खेड कस्बे में। बचपन से ही अत्याचार के खिलाफ विद्रोही स्वभाव। पढ़ाई के साथ-साथ राष्ट्रवाद और आज़ादी का सपना दिल में पाला। किशोर उम्र में ही भगत सिंह और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों के साथ कदम मिलाया।
जब गूंजा था सांडर्स वध
1928 में लाला लाजपत राय पर पुलिस लाठीचार्ज से देश आक्रोश में था। राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव ने तय किया कि इसका जवाब मिलेगा और 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अफसर जे.पी. सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई। यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी – यह ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने वाली क्रांति की गर्जना थी।
अंग्रेजों की अदालत और मौत की सज़ा
ब्रिटिश सरकार ने तीनों क्रांतिकारियों पर “लाहौर षड्यंत्र केस” चलाया।नतीजा – फांसी की सज़ा। 23 मार्च 1931 को राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। कहते हैं, आखिरी वक्त में भी राजगुरु के चेहरे पर मुस्कान थी। इतिहास ने ऐसे शहीद बहुत कम देखे हैं।
राजगुरु का अमर संदेश
“देश पहले, मैं बाद में” – यही था राजगुरु का जीवन मंत्र। वे मानते थे कि स्वतंत्रता अधिकार नहीं, बल्कि हर भारतीय की जिम्मेदारी है।उनकी शहादत आज भी युवाओं को यह संदेश देती है कि बदलाव डर से नहीं, बल्कि साहस और बलिदान से आता है। आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, तो यह उन्हीं वीर सपूतों की देन है। राजगुरु का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति सिर्फ झंडा लहराने से नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने और समाज के लिए कुछ कर गुजरने से साबित होती है। उनकी जयंती पर आइए हम संकल्प लें कि एक न्यायपूर्ण, समानता आधारित और मजबूत भारत का निर्माण करेंगे, जो शहीद राजगुरु के सपनों का भारत होगा।