जोहार हिंदुस्तान | नई दिल्ली : देश की न्याय व्यवस्था और कानूनी संतुलन पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। कांग्रेस नेता और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत कनौजिया ने सोशल मीडिया के माध्यम से एक तीखा सवाल उठाते हुए कहा है कि — “जब उमर खालिद और मीरान हैदर जैसे स्कॉलर बिना ट्रायल के पांच सालों से जेल में सड़ रहे हैं, और बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों में दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को 14 बार पैरोल मिल चुकी है, तो इसे और क्या कहा जाए?”
प्रशांत कनौजिया का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। उन्होंने इस कथन के माध्यम से देश में दोहरी न्याय प्रणाली की ओर इशारा करते हुए कहा कि “यह कैसा कानून है जहां पढ़े-लिखे युवाओं को बिना सजा के सलाखों में डाल दिया गया है, और एक बलात्कारी को हर त्योहार, हर बहाने पर पैरोल पर छोड़ दिया जाता है।”
पैरोल का आंकड़ा चौंकाने वाला
राम रहीम को साल 2017 में साध्वी यौन शोषण मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद से अब तक कुल 14 बार पैरोल दी जा चुकी है, जो कुल मिलाकर 377 दिन बैठता है — यानी एक साल से भी ज्यादा वक्त वो जेल से बाहर रहा है।
दूसरी ओर उमर और मीरान…
दिल्ली दंगों के मामलों में आरोपित उमर खालिद और मीरान हैदर को अब 5 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। बार-बार जमानत याचिकाएं खारिज की जा चुकी हैं।
समाज में उठ रहे सवाल
कनौजिया जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ कई स्वतंत्र पत्रकार और मानवाधिकार संगठनों ने भी इस असंतुलन पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता तब खतरे में पड़ती है जब दोषियों को राहत और निर्दोषों को सज़ा मिलती है।
प्रशांत कनौजिया ने सवाल उठाया की क्या..
यह घटना भारत की लोकतांत्रिक और न्यायिक प्रणाली के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा करती है — क्या कानून सभी के लिए समान है, या फिर न्याय भी विचारधारा देखकर तय होने लगा है?