जोहार हिंदुस्तान स्पेशल | भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जिन नेताओं का योगदान अमिट है, उनमें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। वे न केवल एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि आधुनिक भारत की शिक्षा व्यवस्था के आधार स्तंभ भी माने जाते हैं। उनके अद्वितीय योगदान के सम्मान में उन्हें 1992 में भारत रत्न से अलंकृत किया गया।
संक्षिप्त जीवन परिचय
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का (सऊदी अरब) में हुआ। उनका असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन अहमद था। बचपन से ही उन्होंने अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेज़ी जैसी कई भाषाओं पर अद्भुत पकड़ बना ली थी। वे एक महान विचारक, लेखक, कवि और पत्रकार भी थे।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
असहयोग आंदोलन: महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले इस आंदोलन में आज़ाद ने सक्रिय भूमिका निभाई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन-जागरण किया।
भारत छोड़ो आंदोलन: 1942 के इस आंदोलन के दौरान वे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शामिल थे और जेल भी गए।
कांग्रेस अध्यक्ष: वे 1923 और 1940 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। खास बात यह रही कि 1940 से 1946 तक लगातार कांग्रेस अध्यक्ष रहने वाले वे पहले व्यक्ति थे।
भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में योगदान (1947–1958)
स्वतंत्रता के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें देश का पहला शिक्षा मंत्री बनाया, तब उन्होंने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण की सबसे मजबूत नींव माना। उनके कार्यकाल में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय इस प्रकार है।
1. यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) की स्थापना।
2. IIT खड़गपुर सहित देश के कई प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थानों की नींव।
3. स्कूल शिक्षा पर ज़ोर – प्राथमिक शिक्षा को निशुल्क और अनिवार्य बनाने के प्रयास।
4. साहित्य, संस्कृति और विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना।
5. भारतीय भाषाओं के विकास के लिए ठोस कदम।
दूरदृष्टि और विचारधारा
मौलाना आज़ाद मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाना नहीं, बल्कि व्यक्ति के चरित्र, सोच और रचनात्मकता का विकास करना है। वे कहते थे – “शिक्षा के बिना राष्ट्र का उत्थान असंभव है।”
सम्मान और विरासत
1992 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित।
उनके जन्मदिन 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आज भी भारत की शिक्षा नीति और संस्थानों में उनके विचारों की झलक दिखाई देती है।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद केवल एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, बल्कि भारत के भविष्य के वास्तुकार भी थे। उन्होंने शिक्षा को देश की प्रगति का सबसे अहम साधन माना और इस दिशा में मजबूत आधारशिला रखी। उनकी दूरदृष्टि और कार्य आज भी हमें प्रेरणा देते हैं कि शिक्षा ही वह रोशनी है, जो अज्ञान के अंधकार को मिटा सकती है।