जोहार हिंदुस्तान नेशनल डेस्क: मालेगांव बम धमाका मामले में वर्षों से चल रही कानूनी प्रक्रिया का आज अहम मोड़ आया, जब विशेष एनआईए अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में यह फैसला सुनाया। इस फैसले पर जहां भाजपा और हिंदू संगठनों ने संतोष जताया, वहीं विपक्षी दलों ने इसे न्याय व्यवस्था की चुनौतीपूर्ण स्थिति बताया है। कई सामाजिक संगठनों ने यह मांग भी की है कि मामले की उच्च स्तरीय पुनः समीक्षा होनी चाहिए, क्योंकि विस्फोट में जानें गई थीं।
2008 में मालेगांव, महाराष्ट्र के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में हुए ब्लास्ट में 6 लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों लोग घायल हुए थे। इस मामले में हिंदू संगठनों से जुड़े कई लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें सबसे चर्चित नाम सांसद प्रज्ञा ठाकुर का भी था। उन्हें करीब 9 साल तक इस मामले में जेल और कोर्ट की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।
कोर्ट के फैसले के बाद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा… आज भगवा की जीत हुई है, हिंदुत्व की जीत हुई है। जो ‘भगवा आतंकवाद’ का झूठा आरोप लगाया गया था, वह आज अदालत में पूरी तरह से झूठा साबित हो गया। यह हमारे सनातन धर्म और संस्कृति की विजय है।
पृष्ठभूमि: क्या था मालेगांव ब्लास्ट मामला?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक मोटरसाइकिल में लगे विस्फोटक से धमाका हुआ था। इस मामले में प्रज्ञा ठाकुर समेत 7 लोगों को आरोपी बनाया गया था। मामले की जांच पहले महाराष्ट्र ATS ने की, फिर इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया।
हालांकि एनआईए की ओर से 2016 में अदालत में दाखिल की गई चार्जशीट में कहा गया था कि प्रज्ञा ठाकुर और अन्य के खिलाफ मजबूत सबूत नहीं हैं, लेकिन मामला वर्षों तक चलता रहा।