जोहार हिंदुस्तान | 17 अगस्त 2025 आज “माउंटेन मैन” के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर दशरथ मांझी की पुण्यतिथि है। वह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि हिम्मत, संघर्ष और इंसान के अदम्य साहस की ऐसी मिसाल हैं, जिसे आने वाली पीढ़ियां भी सलाम करती रहेंगी। दशरथ मांझी की कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिन परिस्थितियाँ इंसान को रोक नहीं सकतीं, अगर वह ठान ले तो असंभव को भी संभव कर सकता है।
गरीबी से जंग और असंभव को संभव करने की कहानी
14 जनवरी 1934 को बिहार के गया जिले के गहलौर गाँव में जन्मे दशरथ मांझी बेहद गरीब परिवार से थे। जीवन संघर्ष से भरा हुआ था, लेकिन उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून हमेशा जलता रहा।
उनकी जिंदगी तब बदल गई, जब उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी की मृत्यु इलाज न मिलने की वजह से हो गई। पहाड़ के कारण गाँव से शहर तक पहुंचने में लोगों को लंबा रास्ता तय करना पड़ता था। यही पीड़ा दशरथ मांझी के दिल में आग बनकर जलने लगी।
22 साल की साधना और “पहाड़ तोड़ आदमी”
1960 में उन्होंने एक असंभव दिखने वाले काम की शुरुआत की। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर बिना किसी मदद के दिन-रात, तपती धूप और बरसात झेलते हुए उन्होंने अकेले ही पहाड़ काटना शुरू कर दिया। लगातार 22 साल के कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने 360 फुट लंबा, 30 फुट चौड़ा और 25 फुट ऊँचा पहाड़ काटकर सड़क बना दी।
गांव से शहर की दूरी घटाई
पहले गहलौर गाँव से अतरी और वजीरगंज ब्लॉक तक की दूरी 55 किलोमीटर थी। दशरथ मांझी की बनाई सड़क ने इस दूरी को घटाकर मात्र 15 किलोमीटर कर दिया। यह सिर्फ एक सड़क नहीं थी, बल्कि गांव के लोगों के लिए उम्मीद, सुविधा और जीवन का नया रास्ता थी।
सम्मान और प्रेरणा
दशरथ मांझी को उनके कार्य के लिए “माउंटेन मैन” कहा गया। 2007 में उनके निधन के बाद भी देशभर में उन्हें एक प्रेरणा के रूप में याद किया जाता है। उनकी कहानी पर फिल्में बनीं, किताबें लिखी गईं और आज भी युवा पीढ़ी को उनका संघर्ष यह सिखाता है कि “अगर हौसला और संकल्प मजबूत हो, तो कोई पहाड़ भी रास्ता रोक नहीं सकता।”
पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि
आज उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। गहलौर से लेकर पूरे भारत तक, हर कोई “माउंटेन मैन” को नमन कर रहा है। दशरथ मांझी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि संघर्ष और इंसानियत का प्रतीक बन चुके हैं।