नेशनल डेस्क : असम के गोलाघाट ज़िले में प्रशासन द्वारा चलाए गए एक व्यापक अतिक्रमण हटाओ अभियान के चलते इलाके में रहने वाले 2,000 से अधिक बंगाली मुस्लिम परिवारों को बेघर होना पड़ा है। यह कार्रवाई स्थानीय प्रशासन, वन विभाग और पुलिस बल की संयुक्त टीम द्वारा की गई। कुछ समाजिक संगठनों ने इस कार्रवाई को “सांप्रदायिक भेदभाव” से भी जोड़ते हुए आरोप लगाया कि यह विशेष समुदाय को निशाना बनाने की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि कार्रवाई केवल “अवैध कब्जे” के खिलाफ थी, न कि किसी समुदाय विशेष के खिलाफ।
कार्रवाई का दायरा
प्रशासनिक दावे के अनुसार, यह अभियान सरकारी और वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए चलाया गया था। अधिकारियों का कहना है कि यह ज़मीन वर्षों से “गैरकानूनी कब्जे” में थी, और राज्य सरकार के निर्देश के तहत इसे खाली कराया गया है। हालांकि, स्थानीय निवासियों और मानवाधिकार संगठनों ने इस कार्रवाई को “एकतरफा और अमानवीय” बताया है।
प्रभावित परिवारों की प्रतिक्रिया
बेघर हुए लोगों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वे दशकों से इस भूमि पर रह रहे थे, और अब बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के उन्हें हटाया गया है। कई परिवारों ने आरोप लगाया कि उन्हें न तो पूर्व सूचना दी गई, और न ही पुनर्वास की कोई सुविधा दी गई।
एक स्थानीय निवासी ने बताया
“हमने यहां घर बनाए, बच्चे पाले, खेतों में काम किया। अब अचानक सब उजाड़ दिया गया। हमें बताया भी नहीं गया कि जाएंगे तो कहां?”
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विपक्षी दलों और कुछ सामाजिक संगठनों ने इस कार्रवाई की आलोचना की है। उनका कहना है कि सरकार को पहले पुनर्वास नीति लागू करनी चाहिए थी, ताकि हजारों परिवारों को अचानक बेघर न होना पड़े।
गोलाघाट में चलाए गए इस अतिक्रमण हटाओ अभियान ने हजारों लोगों को प्रभावित किया है। यह मामला एक बार फिर इस सवाल को उठाता है कि क्या सरकारें कानूनी कार्रवाई और मानवीय संवेदनशीलता के बीच संतुलन बना पा रही हैं? बेघर हुए परिवारों की आवाज, पुनर्वास की जरूरत और न्याय की मांग को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।