जोहार हिंदुस्तान | नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया के दौरान वोटर की पहचान स्थापित करने के लिए आधार कार्ड को एक अतिरिक्त दस्तावेज़ के रूप में मानने पर विचार करे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह सुझाव देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को मतदाता पहचान प्रक्रिया को और अधिक सुदृढ़ तथा सुविधाजनक बनाने पर ध्यान देना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वोटर आईडी ही मूलभूत और वैधानिक पहचान पत्र रहेगा, लेकिन यदि कोई व्यक्ति अतिरिक्त दस्तावेज़ देना चाहता है तो आधार कार्ड को भी विकल्प के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
पीठ ने कहा .. वोटर की पहचान को लेकर किसी भी तरह की शंका नहीं रहनी चाहिए। यदि आधार कार्ड उपलब्ध है, तो इसे अतिरिक्त दस्तावेज़ के तौर पर मानने में कोई हानि नहीं है। चुनाव आयोग को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
क्या है Special Intensive Revision (SIR)?
यह प्रक्रिया चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए की जाती है।
इसमें नए वोटरों का नाम जोड़ा जाता है, मृत व्यक्तियों या डुप्लीकेट नाम हटाए जाते हैं और आवश्यक संशोधन किए जाते हैं।
बिहार में वर्तमान में चल रही इस प्रक्रिया का मकसद 2025 विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट को पारदर्शी और शुद्ध बनाना है।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब चुनाव आयोग को यह तय करना होगा कि वह बिहार समेत अन्य राज्यों में आधार कार्ड को पूरक पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करता है या नहीं। इस पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया आने के बाद तस्वीर साफ होगी।