जोहार हिंदुस्तान | चंदवा/लातेहार: जिले के कामता पंचायत के ग्राम जोब्या (दामोदर) सरना समिति की ओर से दिवाली के अगले दिन बुधवार को पारंपरिक सोहराई जतरा महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। यह जतरा न केवल संस्कृति का उत्सव रहा बल्कि आदिवासी समाज की एकजुटता और परंपरागत पहचान का सशक्त प्रतीक भी बनकर सामने आया।
महोत्सव में जोब्या दामोदर, अम्बादोहर और हिसरी गांवों की खोड़हा नृत्य मंडलियों ने पारंपरिक वेशभूषा में ढोल-नगाड़ों की थाप पर झूमर नृत्य प्रस्तुत किया। पारंपरिक विधि-विधान के अनुसार पाहन सुले उरांव, पुजार बले उरांव और धर्म अगुवा चन्द्रदेव उरांव ने पूजा-अर्चना कर महोत्सव की शुरुआत की।
मुख्य अतिथि का संबोधन
महोत्सव का उद्घाटन मुख्य अतिथि कामता पंचायत समिति सदस्य अयुब खान, विशिष्ट अतिथि मुखिया नरेश भगत और अन्य अतिथियों ने संयुक्त रूप से किया।
मौके पर मुख्य अतिथि अयुब खान ने कहा..
सोहराई जतरा हमारी आदिवासी अस्मिता और प्राकृतिक विरासत का प्रतीक है। ऐसे आयोजन समाज में एकजुटता और भाईचारे को मजबूत बनाते हैं। परंपरा तभी जीवित रहती है जब नई पीढ़ी इसे आगे बढ़ाती है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का संदेश
सामाजिक कार्यकर्ता संजीव कुमार ने इसे आदिवासी संस्कृति की “पहचान और धरोहर” बताते हुए कहा कि जतरा महोत्सव केवल उत्सव नहीं, बल्कि परंपरा और संस्कृति को जोड़ने वाला मजबूत सेतु है। युवाओं की भागीदारी सराहनीय है।
मेला और सांस्कृतिक रंग
शाम होते ही आसपास के गांवों से भीड़ उमड़ पड़ी। पूरे इलाके को पारंपरिक तरीके से सजाया गया और तोरणद्वार लगाए गए।
सरना समिति की ओर से सभी खोढ़हा नृत्य मंडलियों को पुरस्कृत किया गया।
महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
महिला सरना समिति सदस्यों ने आगंतुक अतिथियों और नृत्य मंडली का बैच पहनाकर सम्मान किया। मंच संचालन दिनेश उरांव, कुलेश्वर रवि और राकेश बेक ने संयुक्त रूप से किया।
सोहराई जतरा महोत्सव ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि झारखंड की परंपरा, प्रकृति और पहचान आज भी समुदायों के भीतर गहराई से जीवित है। यह आयोजन सामाजिक एकजुटता, सांस्कृतिक धरोहर और आदिवासी अस्मिता का सशक्त परिचायक बना।
