जोहार हिंदुस्तान | नई दिल्ली : भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार, 16 सितंबर 2025 को धर्मांतरण विरोधी कानूनों (anti-conversion laws) की संवैधानिकता पर सुनवाई के लिए एक साझा मंच तैयार किया है। कोर्ट ने उन सभी याचिकाओं को, जो विभिन्न राज्य-उच्च न्यायालयों में लंबित हैं, अपने पास मँगाने के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि “अलग-अलग हाई कोर्टों में समान विषयों पर सुनवाई चल रही है, अतः सभी याचिकाएँ एक साथ सुननी चाहिए।”
कौन से कानून शामिल हैं
निम्नलिखित राज्य सरकारों के धर्मांतरण विरोधी कानून (Providence/regulations) इस संदर्भ में चुनौती के दायरे में हैं
उत्तर प्रदेश (Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Act), मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड वही अन्य राज्यों में भी ऐसे कानून लागू हैं जिनका नाम कोर्ट ने सुनने के दौरान लिया है जिसमें गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक आदि शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
NGO “Citizens for Peace and Justice” ने इन कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 21, 25 जैसे मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए चुनौती दी है।
सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंग ने कहा कि सभी याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट को ट्रांसफर होनी चाहिए, ताकि न्याय एक समान और समेकित हो।
याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से यूपी कानून में कुछ “गंभीर और कठोर प्रावधानों” की ओर ध्यान आकर्षित किया है जैसे कि इंटरफेथ विवाह वालों के लिए ज़मानत पाना मुश्किल हो जाना, ‘बेल’ की शर्तें और ‘reverse burden of proof’ (जिसमें आरोपी को साबित करना पड़े कि उसने धर्मांतरण मजबूरी या लालच या धोखे से नहीं किया) लगना आदि।
सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश दिए हैं
1. अदालत ने राज्यों को आदेश दिया है कि वे चार (4) सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करें (State governments to file their replies in 4 weeks).
2. याचिकाकर्ताओं को जवाब (rejoinders) दाखिल करने के लिए अतिरिक्त दो सप्ताह का समय मिलेगा।
3. छह (6) हफ्तों बाद उन कानूनों पर न्यायालय द्वारा “रोक” (stay) लगाने की मांगों पर विचार किया जाएगा।
कानूनी गंभीरताएँ और विवाद
याचिकाकर्ता दलील देते हैं कि ये कानून धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करते हैं, खासकर जब व्यक्ति अपनी पसंद से धर्म बदलना चाहता हो लेकिन परिवार या समाज दबाव डालता हो।
विपक्षी पक्ष (राज्य सरकारों) का तर्क है कि ये कानून “जबरन धर्मांतरण, लालच, बलात्कार, धोखा या अन्य किसी अनैतिक तरीके से धर्म परिवर्तन” को रोकने के लिए जरूरी हैं।
कुछ कानूनों में शिकायत दर्ज करने की महिला-पुरुष या परिवार के सदस्य पर अधिकार दिया गया है, जिससे कुछ मामलों में लापरवाही या दुरुपयोग के आरोप भी लग रहे हैं।
क्यों है यह मामला अहम?
यह पूरे देश के लिए प्रत्येक राज्य के कानूनों की समीक्षा का अवसर है, क्योंकि अलग-अलग राज्य-अधिनियमों में छोटे-बड़े अंतर हैं, लेकिन विषय समान है।
यदि कोर्ट ने रोक लगाई, तो उन प्रावधानों को बदलने की सम्भावना है जिनमें दोषियों को ज़मानत लेने में कठिनाई हो।
यह मामला “interfaith marriages” यानी अलग-धर्म विवाहों को भी प्रभावित करेगा, विशेषकर उन परिवारों में जहाँ परिवर्तन को लेकर सामाजिक दबाव ज्यादा है।
सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को एक साझा ट्रिब्यूनल बनाने का निर्णय लिया है। चार सप्ताह में राज्यों से जवाब मांगा गया है, और छह सप्ताह बाद मामलों पर रोक लगाने पर विचार होगा।
यह फैसला धर्म और संविधान के बीच संतुलन, व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक प्रशासन के दायरे को तय करेगा।