जोहार हिंदुस्तान | लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर से मुख्तार अंसारी का नाम सुर्खियों में है। जहाँ एक ओर योगी आदित्यनाथ सरकार मुख्तार अंसारी के परिवार और उनके नेटवर्क पर लगातार कार्रवाई कर रही है—जमीनों पर बुलडोज़र, संपत्तियों की कुर्की और आपराधिक मामलों की कड़ी जांच के जरिए दबाव बनाया जा रहा है—वहीं दूसरी ओर सरकार में मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का हालिया बयान सियासी हलकों में हलचल मचा रहा है।
राजभर ने कहा कि “आज भी उत्तर प्रदेश की सियासत में कोई ऐसा नेता नहीं है जो जमीन पर लड़ाई लड़ता हो जैसे मुख्तार अंसारी लड़ा करते थे। आज भी प्रदेश में हजारों लोग खुद को मुख्तारवादी मानते हैं।”
सरकार को आईना दिखाने वाला बयान
गौर करने वाली बात यह है कि राजभर न केवल उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं बल्कि एनडीए के अहम सहयोगी भी हैं। ऐसे में उनका यह बयान सरकार को सीधा आईना दिखाने जैसा माना जा रहा है। एक तरफ़ भाजपा की कानून-व्यवस्था पर आधारित राजनीति है, तो दूसरी तरफ़ राजभर के शब्द यह संकेत देते हैं कि जनता के बीच मुख्तार अंसारी की एक अलग सामाजिक और राजनीतिक पहचान आज भी जीवित है।
मुख्तार अंसारी की ‘ग्राउंड कनेक्ट’ की चर्चा
ओमप्रकाश राजभर ने अपने बयान में यह भी साफ किया कि मुख्तार अंसारी जैसे नेताओं का “ग्राउंड कनेक्ट” आज की राजनीति में दुर्लभ है। उनका कहना है कि आज भी कई इलाकों में लोग खुद को ‘मुख्तारवादी’ कहकर पहचानते हैं, जो इस बात का सबूत है कि उनकी पकड़ सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी प्रभावशाली थे।
2027 चुनावी सियासत की आहट
विशेषज्ञ मानते हैं कि ओमप्रकाश राजभर का यह बयान आगामी 2027 विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष और सरकार दोनों के लिए अहम संदेश है। एक ओर यह बयान भाजपा की सख्त कानून-व्यवस्था की नीति पर सवाल खड़ा करता है, तो दूसरी ओर यह उन समुदायों को भी संदेश देता है जो मुख्तार अंसारी के प्रभाव वाले क्षेत्रों से आते हैं।
मौत के बद भी वर्चस्व की धमक
यह सच है कि मुख्तार अंसारी अब इस दुनिया में नहीं हैं, फिर भी उनकी राजनीति और उनके वर्चस्व की धमक आज भी पूर्वांचल से लेकर पूरे उत्तर प्रदेश की ज़मीन पर महसूस की जाती है।
ऐसे में यह खबर न केवल मुख्तार अंसारी की विरासत को लेकर जारी बहस को और हवा देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सत्ता के भीतर से उठी आवाज़ें कभी-कभी सरकार की सख्त नीतियों को चुनौती भी देती हैं।