जोहार हिंदुस्तान | नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश की दो अलग-अलग घटनाओं ने पुलिस की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहली तस्वीर फिरोज़ाबाद की है। यहां पांच सितंबर को बारह रबी-उल-अव्वल के मौके पर निकले जुलूस के दौरान हुई हुड़दंग में शामिल आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर उनका जुलूस निकाला। आरोपियों को हाथ जोड़कर, कान पकड़कर, माफी मांगते हुए सड़क पर घुमाया गया। पुलिस का यह सख्त रवैया चर्चा में रहा और लोगों ने इसे “हुड़दंगियों का सही इलाज” बताया।
अब दूसरी तस्वीर फतेहपुर से आई है। यहां सत्ताधारी दल से जुड़े अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं पर 200 साल पुराने एक मकबरे पर हमला करने और वहां स्थित मज़ार को क्षतिग्रस्त करने का आरोप है। लेकिन, इन उपद्रवियों के खिलाफ वैसी ही सख्ती देखने को नहीं मिली जैसी कि फिरोज़ाबाद में हुई थी। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों पुलिस ने यहां वैसा “जुलूस” नहीं निकाला, गिरफ्तारी की तस्वीरें नहीं दिखाईं और कठोर कार्रवाई करने में पीछे रह गई।
दोनों मामलों की तुलना को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार पुलिस की सख्ती और कार्रवाई का पैमाना किन आधारों पर तय होता है। कई सामाजिक संगठनों और नागरिकों का कहना है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं, इसलिए किसी भी घटना में कार्रवाई का तरीका एक समान होना चाहिए।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इन घटनाओं ने कानून की निष्पक्षता और समान अनुपालन पर बहस को तेज कर दिया है।