जोहार हिंदुस्तान डेस्क | नई दिल्ली : आज पूरी दुनिया पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब को याद कर रही है, जिसने मानव सभ्यता को अंधेरे से रोशनी की ओर रास्ता दिखाया। पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब की पैदाइश के 1500 साल पूरे होने पर दुनियाभर में जुलूस-ए-मोहम्मदी, नात, दुआ और इंसानियत का पैग़ाम गूँज रहा है। यह सिर्फ धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि मानवता, करुणा और न्याय की विरासत का वैश्विक उत्सव है।
दुनियाभर में जश्न-ए-मिलाद
पाकिस्तान में ‘रहमतुल-लिल-आलमीन सप्ताह’ की शुरुआत, जहां सोशल मीडिया और समाज की जिम्मेदारी पर सेमिनार।
भारत के मुंबई, महिम और हाजी अली दरगाह पर 12 दिन का विशेष आयोजन, इंटर-फेथ डायलॉग और मुफ्त मेडिकल कैंप।
मिस्र (काहिरा): राष्ट्रपति अल-सीसी की मौजूदगी में कुरान तिलावत और आध्यात्मिक सम्मेलन।
सोमालिया (मोगादिशु): धमकियों के बावजूद हजारों लोगों का जुलूस, सुफी समुदाय की गूंजती नात।
यूएई और ओमान में राष्ट्राध्यक्षों ने पैगंबर के जीवन से प्रेरणा लेने का संदेश साझा किया।
पैगंबर मोहम्मद साहब का पैग़ाम
“रहमत सभी के लिए, न कि केवल मुसलमानों के लिए”
1. इंसाफ़ और करुणा: पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा सबसे अच्छा इंसान वह है, जो दूसरों के लिए सबसे अधिक फायदेमंद हो।
2. धर्म से ऊपर इंसानियत: भूखों को खाना खिलाना, अनाथों की मदद, महिलाओं और गुलामों के अधिकार की रक्षा उनका मिशन था।
3. अमन और भाईचारा: हजतुल विदा के खुत्बे में उन्होंने कहा किसी की जान, इज़्ज़त और माल पर हाथ डालना हराम है।
4. पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा: पेड़-पौधे लगाने, पानी बर्बाद न करने और जानवरों पर रहम करने की सीख दी।
आज के दौर में प्रासंगिकता
जब दुनिया नफ़रत, युद्ध और भेदभाव से जूझ रही है, तब पैगंबर मोहम्मद का पैग़ाम हमें रास्ता दिखाता है।
👉 इंसाफ़ करो,
👉 करुणा दिखाओ,
👉 और इंसानियत को सबसे ऊपर रखो।
1500 साल का यह पड़ाव सिर्फ तारीख नहीं, बल्कि इंसानियत की किताब का वह सुनहरा अध्याय है, जिसे हर दौर में पढ़ना और अपनाना ज़रूरी है।
आज के जुलूस-ए-मोहम्मदी सिर्फ जश्न नहीं, बल्कि यह याद दिलाते हैं कि मोहम्मद साहब की जिंदगी का असली मकसद था
“इंसानियत को बचाना और दुनिया में अमन कायम करना।”