जोहार हिंदुस्तान: सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में आदेश दिया है कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति बिना शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पास किए हुई है, उन्हें अब अनिवार्य रूप से TET पास करना होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना TET उत्तीर्ण शिक्षक न तो सेवा विस्तार पाएंगे, न ही उन्हें प्रोन्नति दी जाएगी। यदि वे परीक्षा पास नहीं करते हैं तो उन्हें जबरन सेवानिवृत्ति का सामना करना पड़ सकता है।
संघ का रुख
झारखंड प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने इस आदेश के बाद सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। संघ का कहना है कि 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) लागू होने के बाद ही TET अनिवार्य हुआ था। 2009 से पहले नियुक्त शिक्षक पहले से ही योग्य और पारदर्शी प्रक्रिया से चयनित हुए हैं। ऐसे शिक्षकों पर यह नियम लागू करना अनुचित है।
संघ पदाधिकारियों का बयान
प्रदेश अध्यक्ष शैलेंद्र सुमन, महासचिव प्रेम प्रसाद राणा और संयुक्त सचिव मुमताज अहमद ने कहा..
“हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं, लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि 2009 से पहले जिन शिक्षकों की नियुक्ति आयोग के माध्यम से हुई, उनकी भर्ती पूरी तरह पारदर्शी और गुणवत्ता-आधारित थी। ऐसे शिक्षकों को बार-बार परीक्षा देना तर्कसंगत नहीं है। सरकार को पूर्ण खंडपीठ में री-अपीलीय याचिका दायर करनी चाहिए ताकि 2009 से पहले नियुक्त शिक्षकों को राहत मिल सके।”
कितने शिक्षक प्रभावित होंगे?
जानकारी के अनुसार, झारखंड में लगभग 35,000 प्राथमिक शिक्षक 2009 से पहले नियुक्त हुए हैं। इनमें से कई शिक्षक सेवा के अंतिम चरण में हैं। शिक्षक संघ का कहना है कि यदि सरकार समय पर पहल नहीं करती तो हजारों परिवारों पर संकट आ सकता है।
संघ की मांग
2009 से पहले नियुक्त शिक्षकों पर TET की अनिवार्यता समाप्त की जाए। केंद्र और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करें। सरकार जल्द स्पष्ट नीति बनाकर शिक्षकों की असमंजस स्थिति दूर करे।
झारखंड में TET विवाद एक नजर में
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: बिना TET पास शिक्षक को प्रोन्नति या सेवा विस्तार नहीं मिलेगा। TET पास नहीं करने पर जबरन रिटायरमेंट।
संघ का तर्क: 2009 से पहले भर्ती में TET शर्त नहीं थी, लोक सेवा आयोग के माध्यम से हुई नियुक्ति पहले से ही मान्य है।
प्रभावित शिक्षक: लगभग 35,000 शिक्षक, जिनमें अधिकांश सेवा के अंतिम चरण में हैं।