जोहार हिंदुस्तान डेस्क | अहमदाबाद : गुजरात से एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। चुनावी चंदे के खेल में ऐसे राजनीतिक दलों का नाम सामने आया है, जिनका ज़मीनी सियासत से लगभग कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी उन्हें दानदाताओं ने अरबों रुपए का चंदा दिया।
चुनाव आयोग में पंजीकृत इन 10 गुमनाम दलों को साल 2019-20 से लेकर 2023-24 के बीच करीब 4300 करोड़ रुपए का चंदा मिला। हैरानी की बात यह है कि इन दलों ने इन 5 सालों में सिर्फ 39 लाख रुपए खर्च दिखाए, जबकि दान की राशि 3500 करोड़ रुपए तक बताई गई।
आंकड़े हैरान करने वाले
रिपोर्ट बताती है कि इन 10 दलों ने गुजरात की लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मिलकर 54,086 प्रत्याशी उतारे लेकिन मतदाताओं ने इन्हें लगभग नकार दिया। इनके प्रत्याशियों को कुल 23.6 लाख वोट ही मिले। कई दल तो ऐसे हैं, जिन्होंने लाखों-करोड़ों का चंदा लिया लेकिन चुनाव मैदान में नाम मात्र का खर्च दिखाया।
किसे कितना चंदा?
लोकशाही सत्ता पार्टी को सबसे ज्यादा 1045 करोड़ रुपए का दान मिला।
इसके बाद भारतीय जनसत्ता दल को 962 करोड़
लोक परिवर्तन पार्टी को 686 करोड़
इंडियन यूनाइटेड पार्टी को 608 करोड़ का चंदा मिला।
इन गुमनाम पार्टियों के चुनावी नतीजे
लोकशाही सत्ता पार्टी ने 3997 प्रत्याशी उतारे, लेकिन सिर्फ 4 प्रत्याशी ही जीते। भारतीय जनसत्ता दल ने 11,496 उम्मीदवार उतारे, लेकिन नतीजा लगभग शून्य रहा। इसी तरह कई दल सिर्फ नाम के लिए चुनाव लड़ते रहे लेकिन अरबों का चंदा बटोरते रहे।
बड़ा सवाल
अब सवाल यह उठता है कि
आखिर ये चंदा किसने और क्यों दिया? जब इन दलों का जमीनी आधार ही नहीं है, तो दानदाताओं ने अरबों रुपए लगाने का जोखिम क्यों उठाया? क्या यह काले धन को सफेद करने का खेल है? या फिर चुनावी सिस्टम के नाम पर गुमनाम दलों के जरिए बड़ा घोटाला रचा जा रहा है?
सिस्टम पर सवाल
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पूरा खेल चुनावी बॉन्ड और अघोषित चंदे से जुड़ा हुआ है। ऐसे गुमनाम दलों के जरिए राजनीतिक फंडिंग का जाल बिछाकर पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। यह खुलासा बताता है कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करने का काम सिर्फ़ बड़े दल ही नहीं, बल्कि गुमनाम और कागजी पार्टियां भी कर रही हैं।
चंदे के इस खेल ने यह साबित कर दिया है कि राजनीति अब “जनसेवा” से ज़्यादा “धनसेवा” का अखाड़ा बन चुकी है।