जोहार हिंदुस्तान | पटना : बिहार की सियासत में इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यही है कि – आखिर INDIA गठबंधन ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को अपने साथ क्यों नहीं जोड़ा? विधानसभा चुनाव की आहट से पहले इस फैसले ने राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने पार्टी नेता राणा रणजीत के ज़रिए गठबंधन की पार्टियों को चिट्ठी भेजी थी और AIMIM को गठबंधन में शामिल करने की मांग की थी। यही नहीं, कांग्रेस आलाकमान को भी पत्र भेजा गया। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस और राजद चुप्पी साधे रहे, मानो AIMIM को किनारे करने का मन पहले से बना लिया गया हो।
अब सवाल उठ रहा है कि बिहार में जहां मुसलमान, दलित और वंचित समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहां ओवैसी की पार्टी को बाहर रखकर कांग्रेस-राजद किस तरह “इंसाफ की राजनीति” का दावा कर सकती हैं?
दरअसल, विरोधियों का आरोप है कि AIMIM विपक्षी वोटों को काटती है। लेकिन AIMIM का दावा है कि उसकी पार्टी मजलूमों, अल्पसंख्यकों, मजदूरों और दलितों की असली आवाज़ है – जो सड़क से लेकर सदन तक उनके हक की लड़ाई लड़ती है। यही वजह है कि सीमांचल जैसे इलाकों में AIMIM का अब भी मजबूत जनाधार है।
गौरतलब है कि 2020 विधानसभा चुनाव में AIMIM ने बिहार में 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भले ही बाद में इनमें से 4 विधायक राजद में चले गए, लेकिन सीमांचल में AIMIM की पकड़ आज भी मज़बूत बनी हुई है।
ओवैसी ने भी साफ चेतावनी दे दी है – अगर पार्टी को गठबंधन में जगह नहीं मिली तो AIMIM इस बार बिहार की हर विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।
अब असली सवाल यह है कि क्या INDIA गठबंधन ने AIMIM को नज़रअंदाज़ करके बिहार में मुस्लिम, दलित और वंचित समाज का भरोसा खोने का रिस्क ले लिया है? या फिर यह सब महज चुनावी गणित का हिस्सा है?
बिहार की सियासत का अगला अध्याय तय करेगा – AIMIM गठबंधन के अंदर होगी या बाहर, लेकिन मुकाबला दोनों हालात में दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण होगा।