जोहार हिंदुस्तान | नई दिल्ली : एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने शनिवार को देशभर के मुख्यमंत्रियों की संपत्ति का ताज़ा ब्योरा जारी किया है। इस रिपोर्ट ने एक बार फिर नेताओं की आर्थिक स्थिति पर बहस छेड़ दी है।
ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के मुख्यमंत्रियों की कुल घोषित संपत्ति लगभग 1,600 करोड़ रुपये है। इनमें सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया है आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने, जिनकी संपत्ति ही अकेले 931 करोड़ से अधिक है।
ADR की यह रिपोर्ट न सिर्फ़ नेताओं की आर्थिक स्थिति का खुलासा करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारतीय राजनीति में धन और सादगी दोनों के उदाहरण मौजूद हैं।
जहाँ एक तरफ चंद्रबाबू नायडू और पेमा खांडू जैसे नेता करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं, वहीं ममता बनर्जी और पिनारायी विजयन जैसे मुख्यमंत्री अब भी अपेक्षाकृत साधारण जीवन जीते दिखाई देते हैं।
चंद्रबाबू नायडू सबसे अमीर मुख्यमंत्री
रिपोर्ट के अनुसार, नायडू की संपत्ति में जमीन-जायदाद, बैंक बैलेंस, निवेश और अन्य स्रोत शामिल हैं। नायडू लंबे समय से अपने व्यापारिक दृष्टिकोण और विकास आधारित नीतियों के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि उन्हें राजनीति में अक्सर “टेक्नोक्रेट सीएम” भी कहा जाता है।
ADR रिपोर्ट क्यों अहम है?
ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) हर साल नेताओं की संपत्ति और आपराधिक मामलों से जुड़ी जानकारी को सामने लाता है। यह डेटा चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों और शपथपत्रों के आधार पर तैयार किया जाता है।
इस रिपोर्ट का मकसद राजनीति में पारदर्शिता बढ़ाना और जनता को अपने नेताओं की आर्थिक स्थिति से अवगत कराना है।
भारत के सबसे अमीर मुख्यमंत्री (टॉप-3)
1. एन. चंद्रबाबू नायडू (आंध्र प्रदेश) – 931 करोड़ से अधिक
2. पेमा खांडू (अरुणाचल प्रदेश) – लगभग 332 करोड़
3. सिद्धारमैया (कर्नाटक) – 51 करोड़ से अधिक
भारत के सबसे गरीब मुख्यमंत्री (टॉप-3)
1. ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल) – केवल 15 लाख से थोड़ा अधिक
2. ओमर अब्दुल्ला (जम्मू और कश्मीर) – लगभग 55 लाख
3. पिनारायी विजयन (केरल) – 1.18 करोड़ से थोड़ा अधिक
संपत्ति पर भारी असमानता
यह रिपोर्ट बताती है कि देश के मुख्यमंत्रियों के बीच संपत्ति का भारी अंतर है। जहाँ एक ओर कुछ मुख्यमंत्री अरबों की संपत्ति रखते हैं, वहीं दूसरी ओर कई मुख्यमंत्री मामूली संपत्ति के साथ राजनीति में सक्रिय हैं। यह असमानता भारत की राजनीति में नेताओं की आर्थिक पृष्ठभूमि की विविधता को उजागर करती है।