जोहार हिंदुस्तान स्पेशल : देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित कांग्रेस पार्टी के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम “Constitutional Challenges: Perspectives & Pathways” में देश के कई ऐतिहासिक और समकालीन नेताओं की तस्वीरें मंच पर प्रदर्शित की गईं। लेकिन इस मंच की एक प्रमुख अनुपस्थिति ने राजनीतिक और वैचारिक बहस को जन्म दे दिया — वह नाम है भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का। मौलाना आज़ाद कोई सामान्य नेता नहीं, बल्कि राष्ट्र की बुनियाद गढ़ने वालों में से एक थे। उन्हें धार्मिक पहचान में सीमित करना उनके योगदान का अपमान है। अगर कांग्रेस खुद को संविधान, धर्मनिरपेक्षता और समानता का प्रहरी मानती है, तो उसे अपने मंच पर मौलाना आज़ाद की जगह फिर से सुनिश्चित करनी होगी।
सवाल यह है
देश की आज़ादी के बाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री, संविधान सभा के अहम सदस्य, और विभाजन के कट्टर विरोधी मौलाना आज़ाद की तस्वीर हर बार कांग्रेस के मंच से क्यों ग़ायब रहती है? क्या वह गांधी, नेहरू, पटेल, अंबेडकर के समकक्ष नहीं थे?
कौन थे मौलाना आज़ाद?
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अहम स्तंभ।
हिंदू-मुस्लिम एकता के कट्टर पैरोकार।
विभाजन के खिलाफ आख़िरी सांस तक लड़े।
भारत के पहले शिक्षा मंत्री, जिनकी नीतियों ने भारत की आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी।
उनकी जयंती (11 नवंबर) को हर साल राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कांग्रेस के मंच से अनुपस्थित क्यों?
कई वर्षों से देखा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी अपने पोस्टरों, बैनरों और कार्यक्रमों में मौलाना आज़ाद की तस्वीर को दरकिनार करती रही है, जबकि उनके समकालीन अन्य नेता लगातार जगह पाते हैं। क्या यह राजनीतिक भूल है या सोची-समझी चुप्पी?
विश्लेषण: क्या यह कांग्रेस की भूल है या रणनीति?
1. ध्रुवीकरण से डर? मौलाना आज़ाद का नाम आज के समय में एक मुस्लिम नेता के रूप में सीमित कर देखे जाने लगा है, जबकि उनका योगदान राष्ट्रीय था, धार्मिक नहीं। क्या कांग्रेस हिंदू वोटबैंक के दबाव में मौलाना को अनदेखा करती है?
2. संघर्षशील स्मृतियां: मौलाना आज़ाद ने नेहरू और गांधी से कई मौकों पर असहमति जताई थी। क्या कांग्रेस इतिहास में मौजूद मतभेदों से असहज महसूस करती है?
3. अल्पसंख्यकों को क्या संदेश? कांग्रेस को अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रतिनिधि माना जाता रहा है। ऐसे में मौलाना आज़ाद को दरकिनार करना क्या माइनॉरिटी समुदाय को गलत संदेश नहीं देता?
अब सवाल जनता का
क्या गांधी और नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी मौलाना आज़ाद को भूलने का अधिकार रखती है? क्या पार्टी को अपने इतिहास के हर पात्र को समान महत्व नहीं देना चाहिए?
सामाजिक प्रतिक्रिया
इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर देखने के बाद कई इतिहासकार, शिक्षाविद् और आम लोग सवाल उठा रहे हैं कि.. मौलाना आज़ाद का नाम मिटाकर कांग्रेस क्या इतिहास से भाग रही है? जो शख्स मुसलमान होकर भी पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा रहा, उसे भुलाना न केवल नाइंसाफी है, बल्कि राजनीतिक कमजोरी भी।